वाराणसी। काशी- वाराणसी विरासत फाउंडेशन की ओर से तीन दिवसीय काशी-वाराणसी साहित्य महोत्सव के दूसरे दिन शनिवार को दो अकादमिक सत्रों और एक खुली चर्चा-परिचर्चा सत्र का आयोजन नागरी नाटक मंडली में किया गया। विश्व साहित्य के संदर्भ: हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य विषयक प्रथम अकादमी सत्र की अध्यक्षता ख्यातिलब्ध साहित्यकार गिरीश पंकज ने की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डॉ. विद्या विंदु सिंह रहीं। मंचासीन अतिथियों का स्वागत डॉ. अजित सैगल ने किया।
अतिथि डॉ. विद्या विंदु सिंह ने कहा कि भाषाएं संस्कृति के प्रचार का माध्यम है। आज भाषाओं की संस्कृति बचाने की जरूरत है। सभी भारतीय भाषाओं का एक रागात्मक बोध है, वह बना रहना चाहिए। विज्ञान और राजनीति भी संस्कृति में हस्तक्षेप करता है। अन्य तत्व भी हस्तक्षेप करते हैं। लेकिन उससे यदि संस्कृति का भला होता है तो उसका स्वागत करना चाहिए ।अध्यक्षीय उद्बोधन में ख्यातिलब्ध साहित्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि हमें अपनी संस्कृति व साहित्य को सहेजना चाहिए। महोत्सव में आयोजक मंडल के अध्यक्ष व लखनऊ विश्ववविद्यालय हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित, संयोजक प्रो. राममोहन पाठक, स्वागताध्यक्ष शरद कुमार त्रिपाठी, उपाध्यक्ष डॉ. जितेंद्रनाथ मिश्र, समाजसेवी व उद्योगपति आरके चैधरी, राजेन्द्र गोयनका, वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अजित सैगल, सुषमा अग्रवाल, डॉ. हीरालाल मिश्र‘ मधुकर‘, डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. हिमांशु उपाध्याय, आयोजक मंडल के अकादमिक संयोजक श्री कमलेश भट्ट (कमल), स्वागताध्यक्ष शरद कुमार त्रिपाठी, समन्वयक अमितांशु पाठक, गौरी शंकर नेवर, डॉ. किंशुक पाठक रहे ।।