वाराणसी 23 फ़रवरी :- भाषा किसी भी संवाद के लिए आत्मा का स्वरूप है। भाषा साहित्य के लिए सौंदर्य की चीज है, जैसे मनुष्य के लिए सुंदर परिधान। अनुवाद की प्रक्रिया केवल ट्रांसलेशन से नहीं गुजरती, बल्कि वह अपनी सम्पूर्ण यात्रा ट्रांस्क्रियेशन के माध्यम से पूरा करती है। केदारनाथ सिंह, जिन्हें हिंदी ज्ञान अंतरिक्ष पर एक महाकवि के रूप में याद किया जाता है| उक्त बातें हिंदी तथा आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं साहित्य कला न्यास, वाराणसी के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित “भारतीय भाषाओं में संवाद : आत्मचित्रम एवं केदारनाथ सिंह का काव्यलोक” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के. सत्यनारायणा (पुलिस महानिरीक्षक, वाराणसी परिक्षेत्र) ने कही। उनकी कविताओं का तेलुगु अनुवाद सुप्रसिद्ध हिंदी-तेलुगु साहित्यकार के. सत्यनारायणा ने किया है। के. सत्यंनारायणा ने आगे कहा कि वो केदारनाथ सिंह को नहीं जानते, लेकिन उन्होंने जब उन्हें पढ़ा तब उन्हें यह महसूस हुआ कि प्रकृति एवं समाज का जो चित्रण केदारनाथ सिंह ने किया है, वह विरले ही मिलता है। उन्होंने अनुवाद प्रक्रिया के बारे में भी तफ़सील से चर्चा की और बताया कि अनुवाद करते वक्त किस तरह की सावधानियां बरतनी चाहिए। आपने “आत्मचित्रम” नाम से केदारनाथ सिंह के 100 कविताओं का अनुवाद किया है और इस दौरान आपने बताया कि अनुवाद के दौरान उन्हें किस-किस दुश्वारियों का सामना करना पड़ा।
इस अवसर पर कुलपति प्रो० आनंद कुमार त्यागी ने उद्घाटन वक्तव्य देते हुए कहा अनुवाद कर्म एक दुष्कर कार्य है. अनुवाद से रचना व रचनाकार वृहत्तर दुनिया का हिस्सा बनते हैं. उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की बांग्ला कृति गीतांजलि के अंग्रेजी में अनुवाद का ज़िक्र किया और बताया कि अनुवाद ने विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार तक रचना को पहुँचाया. उन्होंने हिन्दी विभाग के शोधार्थियों का आह्वान किया कि वे अनुवाद की रचनात्मकता को पहचानते हुए अनुवाद प्रशिक्षण प्राप्त करें.
विषय प्रवर्तन करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय ने कहा कि हिंदी एवं दक्खिनी हिंदी के विकास में दक्षिण भारतीयों एवं साहित्यकारों का योगदान अपूर्व है। उन्होंने आगे कहा कि बहुभाषिक देश भारत की धड़कनें यहाँ की विभिन्न भाषाएँ रही हैं, जिनका हिन्दी से गहरा और आत्मीय संबंध रहा है. तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, तमिल भाषाओं के अनेक विद्वानों ने बरतानी हुकूमत के दौरान हिन्दी पढ़ने-पढ़ाने के लिए जेल जाना तक स्वीकार किया. इन भाषाओं से हिन्दी और हिन्दी से इन भाषाओं में विभिन्न अनुवाद हुए. हिन्दी-तेलुगु कवि के० सत्यनारायणा के रचनात्मक अवदान से दोनों भाषाएँ परिचित हैं.
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. सुरेंद्र प्रताप ने कहा कि जिस तरीके से टैगोर की कविता वैश्विक फलक को प्राप्त की, वह अंग्रेजी अनुवाद के कारण ही सम्भव हो सका। उसी तरीके से आज केदारनाथ सिंह की भी कविता अखिल भारतीय स्तर पर अपनी स्थान बनाने में सफल हुई हैं, इसका श्रेय के. सत्यनारायणा को हासिल है।
इसके बाद के० सत्यनारायणा और विभागाध्यक्ष प्रो० निरंजन सहाय ने हिन्दी कवि केदारनाथ सिंह की विभिन्न कविताओं का तेलुगु-हिन्दी पाठ किया. तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा सभागार इस काव्यपाठ से गूंज उठा.
विशिष्ट वक्ता के रूप में पधारे प्रो० वी० वेंकटेश्वरलू (विभागाध्यक्ष, तेलुगु विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) ने अनुवाद की रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए विविध हिन्दी एवं दक्षिण भारतीय भाषाओं विशेषकर तेलुगु में हुए अनुवादों पर सभी का ध्यान केंद्रित कराया. साथ ही श्री रविनंदन सिंह (संपादक, सरस्वती पत्रिका) ने कबीर के आलोक में काव्य महत्व पर प्रकाश डालते हुए कविता करने के लिए उदात्तता को आवश्यक बताया. साथ ही इन्होंने अनुवाद के भेद भावानुवाद एवं शब्दानुवाद पर विस्तृत जानकारी दी. शब्दबीज पत्रिका के संपादक डॉ इंदीवर पांडेय ने “आत्मचित्रम्” पुस्तक में संकलित केदारनाथ सिंह जी की विशिष्ट कविताओं पर आलोचकीय दृष्टि से उसके महत्व को बताया और कुछ काव्यांशों का काव्यपाठ प्रस्तुत किया.
इसी क्रम में द्वितीय सत्र का आयोजन प्रो० निरंजन सहाय की अध्यक्षता में किया गया. इस सत्र की मुख्य अतिथि के रूप में अंकित राज (सलाहकार, राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान) उपस्थित रहीं. उन्होंने शोधार्थियों के साथ संवाद सत्र में सकारात्मक व्यवहार द्वारा जीवन में सकारात्मक परिवर्तन कैसे लाया जाए , पर लघु एवं रोचक नीति कथाओं के माध्यम से समझाया. इसके बाद प्रो० राज मुनि तथा अनेक शोधार्थियों हनुमान राम, जनमेजय, शिव शंकर, अंशु, स्तुति, प्रतिभा, अंजना भारती, वरुणा, आकाश, सीता सुंदर, आरती, उज्जवल, मनीष, प्रवीण, शिवम, वागीश, सौरभ, प्रज्ञा आदि के द्वारा बांग्ला, मलयालम, तेलुगु, संथाली, पंजाबी एवं मराठी आदि भारतीय भाषाओं की कविताओं का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया.
इस अवसर पर प्रो० अनुराग कुमार, प्रो० राजाश्रय सिंह, प्रो० अनुकूल चंद राय, डॉ विजय कुमार रंजन, डॉ सुरेन्द्र प्रताप सिंह, प्रो० अमिता सिंह तथा अन्य विभागों के आचार्य तथा शोधार्थी उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रीति एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुरेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा किया गया.