महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी में चल रहे अखिल भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा परिषद के 40वें राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन हुआ। इसमें प्राकृतिक चिकित्सा शिक्षा के भूत वर्तमान और भविष्य पर गहन मंत्रणा हुई जिसमें देश भर से जुटे विद्वानों ने प्रतिभाग किया।
 अखिल भारतीय चिकित्सा परिषद तथा योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा शिक्षा केन्द्र महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के संयुक्त तत्वावधान में चल रहे सम्मेलन के समापन समारोह के मुख्य अतिथि डा० शिखा सान्याल ,महासचिव,ने उपस्थित प्रतिभागियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि " अस्पताल में मरीज रोगी के रूप में जाता है लेकिन वापस डाक्टर के रूप में आता है। लोगों में इस चिकित्सा पद्धति में धैर्य की महत्ता को लोगों तक पहुंचाना है ताकि चिकित्सा के दौरान रोगी ऊब कर छोड़ दे। भारत में गरीबी अभी भी है लोग महंगे चिकित्सकीय सुविधा का लाभ नहीं उठा सकते हैं।ऐसे में प्राकृतिक चिकित्सा उन्हें सहायता प्रदान कर सकती है।"
    अपने उद्बोधन में प्रो०शंकर कुमार सान्याल अध्यक्ष अखिल भारतीय प्राकृतिक चिकित्सा परिषद ने कहा कि इस सम्मेलन में देश भर से जुटे विद्वानों ने जिस स्तर का शोध पत्र प्रस्तुत किया वह प्रशंसनीय है, हम एक नए किरण के साथ प्राकृतिक चिकित्सा के पथ पर अग्रसर होंगे। हमे रोज़गार खोजना नहीं उपलब्ध कराने वाला बनना है। अच्छे केंद्रों की स्थापना के साथ ही योग्य चिकित्सक भी पैदा करना होगा ताकि समाज उसका लाभ ले सके।

” समारोह की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के कुलपति प्रो०ए के त्यागी ने सभी आगंतुकों के आगमन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ” इस सम्मेलन से कुछ सार्थक बातें निकली होंगी जो प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा। यह बहुत दुखद बात है को सबसे पुरानी सभ्यता हमारी है और लगभग 6000वर्षपूर्व भी हम प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति का प्रयोग करते थे, अर्थात उनका उल्लेख वेदों में है और हम उसका श्रेय विदेशी विद्वानों को दे रहे है। हमे आवश्यक है स्वयं पर अपने वेदों ग्रंथो शास्त्रों पर विश्वास करें। गांधी जी के दर्शन ने हमारे जीवन और अर्थव्यवस्था पर तक प्रभावित किया तो क्यों ना हम उसी मार्ग पर चलते हुए प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाएं।”
कल के उद्घाटन समारोह में माननीय राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल के द्वारा विमोचित दो पुस्तकों का वितरण भी प्रतिभागियों में किया गया
सम्मेलन के द्वितीय दिवस,प्रथम सत्र में प्रथम वक्ता के रूप में डा रमेश चन्द्र जी ने थायराइड के रोग पर प्रकाश डालते हुएं बताया कि” यह हमारे शारीर का एक प्रकार का सन्तुलन यंत्र होता है,जो पुरे शरीर के तंत्रों को नियंत्रित करता है।इसके अनियंत्रण के फलस्वरूप शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर दुष्प्रभाव देखने को मिलता है। इसका निदान तमाम यौगिक क्रियाओ से किया जा सकता है। जिसमें गर्दन के व्यायाम विशेषकर सूर्य नमस्कार, उज्जैनी प्रणायाम त्रिबंध के साथ बहुत लाभकारी होता है।”
द्वितीय वक्ता प्रो सरस्वती काला देहरादून ने कहा कि “प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत कार्य हुए हैं परन्तु वह आम जन तक नहीं पहुंच पाई। सबसे बड़ी बात अभी भी लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा के प्रति विश्वास कम है। विशेषकर मृदा चिकित्सा के समय मिट्टी के गुणों की जानकारी आवश्यक है क्योंकी मिट्टी में सभी प्रकार के विषैले तत्वों को अवशोषित करने की क्षमता के साथ साथ प्राणशक्ति भी है जो बीज को वृक्ष के रुप परिवर्तित कर देता है।”
द्वितीय सत्र का शुभारम्भ स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी के उद्बोधन से हुआ। स्वामी जी ने अपने उदबोधन में उपस्थित विद्वानों से आह्वाहन किया कि” प्राकृतिक चिकित्सा को समग्र रूप से समझने के साथ उसके एक एक बात का विश्लेषण आवश्यक है।योग और प्राकृतिक चिकित्सा एक दूसरे के पूरक हैं क्योंकि अष्टांग योग में अध्यात्म और प्राकृतिक चिकित्सा दोनों शामिल हैं अज्ञानता को दूर करना है तो उसे जानना होगा, अर्थात चल रहे विषयों में सुधार की आवश्यक्ता है।”
इनके अलावा डा नरेन्द्र सिंह, डा० संजय सिंह ने अपने विचार व्यक्त किया। देश भर से आए प्रतिभागियों द्वारा 30 से भी ज्यादा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए।
विशिष्ट अतिथि के रूप में स्वामी शंकरानन्द सरस्वती,डा० आर एस डवास, प्रो०श्रीकान्त पाटिल उपस्थित रहे। डा०सरस्वती काला, डा०भावना त्रिवेदी, क्षेत्रीय अधिकारी,आयुष मंत्रालय,डा०सुनीता पाण्डेय कुलसचिव, श्री हरिश्चंद्र, प्रो अमिता सिंह की भी उल्लेखनीय रही।
अतिथियों का स्वागत प्रो० सुशील कुमार गौतम (सम्मेलन निर्देशक) एवं प्रो०संजय (सम्मेलन समन्वयक)ने किया, वाचिक स्वागत डा० सुनील कुमार यादव ने सम्मेलन की आख्या डा० सुनीता ने प्रस्तुत किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो०एन पी सिंह आयोजन सचिव ने तथा संचालन डा०चंद्रमणि ने किया। आयोजन के सम्पूर्ण आयोजना में डा सुनील कुमार यादव, डा सुनीता, श्रीमती निशा यादव, सुश्री पूजा सोनकर, पंकज कुमार निगम का विशेष योगदान रहा।
इस अवसर पर डा०श्रवन यादव, डा०संजय नारायण सिंह, डा०रणधीर सिंह, डा०शैलेश,डा० बृजेश,डा०नौशाद अली,डा०बालरूप यादव, अमित कुमार गौतम, डा० देवेश सिंह, विजय यादव, क्रान्ति कुमार,भूपेन्द्र उपाध्याय, रमेश यादव, प्रताप शंकर दुबे, सरिता गुप्ता, अरविन्द सिंह, स्वतंत्र सिंह सहित बड़ी संख्या में प्रतिभागी उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अन्त में प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किया गया ।।

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