संस्कृति विभाग, उ०प्र० सरकार एवं हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के संयुक्त तत्त्वावधान में लमही महोत्सव- 2023 अन्तर्गत “राष्ट्रीयता की अवधारणा और प्रेमचंद” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गॉंधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो० आनन्द कुमार त्यागी ने उपन्यास सम्राट प्रेमचंद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए ये बातें कही। उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में- समानता, विविधता में एकरूपता लाने के सद् प्रयास एवं मानवीय मूल्यों का फिर से उद्भव को प्रेमचंद के राष्ट्रवाद की तीन अद्भुत शक्ति के रूप में रेखांकित किया।
संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के कुलपति प्रो० सैयद ऐनुल हसन उपस्थित रहे। प्रो० हसन ने अपने वक्तव्य में प्रेमचंद के राष्ट्रवाद की चर्चा करते हुए कहा- ” प्रेमचंद की पहचान अपने आपको पहचाने बिना सम्भव नहीं है। प्रेमचंद को लमही में रखना केवल एक लमहे में रखना है। यदि हम प्रेमचंद को बनारस से बाहर निकालकर देखेंगे तो शताब्दियों में देखेंगे। प्रेमचंद का दायरा केवल हिन्दी-उर्दू संसार ही नहीं है। दुनियाभर के साहित्य में उनके परचम की धूम है।” प्रो० हसन ने कफ़न, पूस की रात आदि कहानियों का हवाला देते हुए बताया कि यह बनारस है जिसका जादू पूरा दुनिया में सर चढ़कर बोलता है।
इससे पूर्व संगोष्ठी के संयोजक प्रो० निरंजन सहाय (विभागाध्यक्ष, हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, महात्मा गॉंधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी) ने संगोष्ठी का विवरण प्रस्तुत करते हुए विषय प्रवर्तन किया। प्रो० सहाय ने संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा- “नयी शिक्षा नीति- 2020 के आलोक में भारतीय भाषाओं में संवाद का सिलसिला फिर से कैसे बहाल हो इसी कड़ी के विस्तार के क्रम में हिन्दी-उर्दू के सबसे बड़े अफ़सानानिगार प्रेमचंद के स्मरण में ही इस संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। हिन्दी और उर्दू दोनों ज़बानों में अदावतें कैसे कम हो सके इसकी तलाश ही संगोष्ठी का उद्देश्य है। राष्ट्रीयता का स्वरूप राष्ट्र के लोगों के दारुण दुखों, उनसे संघर्ष करने के उत्साह एवं भविष्यबोध से निर्धारित होता है। प्रेमचंद का साहित्य बनारस और उसके आस-पास की दुनिया के लोगों की उसी धड़कन को सुनता है और साहित्य की परिधि में शामिल करता है।”
विशिष्ट अतिथि के रूप में हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्राध्यापक प्रो० राजकुमार ने बीज वक्तव्य प्रस्तुत किया। प्रो० राजकुमार ने प्रेमचंद को अपने दौर का एक प्रमुख समाजशास्त्री बताते हुए कहा- ” प्रेमचंद के राष्ट्रीयता सम्बन्धी को समझने के लिए उनके उपन्यासों और कहानियों के स्थान पर उनके आलेखों का अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है। प्रेमचंद जिस राष्ट्रवाद पर विचार करते हैं उसका सम्बन्ध पश्चिमी राष्ट्रवाद से है जिसका भारतीय राष्ट्रवाद से तुलनात्मक अध्ययन करते हुए वह पश्चिमी राष्ट्रवाद की कमियाँ उजागर करते हैं।
इससे पूर्व मंचस्थ अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी, राष्ट्ररत्न- शिवप्रसाद गुप्त के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इस दौरान हिन्दी विभाग की शोध पत्रिका ‘अन्वेषण प्रतिमान’ एवं भित्ति पत्रिका ‘भाषाघर’ के नये अंक का लोकार्पण मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन विभाग के उपाचार्य डॉ० अविनाश कुमार सिंह द्वारा किया गया ।।