प्रेमचंद का साहित्य विश्वबोध का साहित्य है। प्रेमचंद को किसी एक भौगोलिक सीमा में बांधकर देखना सही नहीं होगा।
उनके साहित्य में न केवल भारत की समस्या दृष्टिगोचर हैं अपितु, विश्व की समस्याओं की भरमार है। भारत बोध केवल उन लोगों द्वारा कहीं गई बातें नहीं है बल्कि उसका विश्व पटल पर क्या असर हुआ वो भारत बोध हैं। उक्त बातें राष्ट्रीयता की अवधारणा और प्रेमचंद विषयक इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहीं। अपने सम्बोधन के दौरान हिंदी विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रो. बलराज पांडेय ने प्रेमचंद के साहित्य को समझाते हुए बताया कि प्रेमचंद के भारत बोध को समझने से पहले हमें प्रेमचंद को समझना चाहिए। प्रेमचंद भारतीय सामंतवाद, पूंजीवाद और जमींदारी प्रथा से लड़ते हैं।
प्रेमचंद के मुख्य धारा के जो पात्र दिखते हैं उसके समानांतर जो दूसरे पात्र दिखते हैं वो भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते हैं- उक्त बातें डीएवी पीजी कॉलेज के उप प्राचार्य प्रो. समीर कुमार पाठक ने कहीं। कार्य के समापन में अपना अनुभव साझा करते हुए हिन्दी और अन्य भारतीय भाषा विभाग, म. गां. का. वि. के अध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय ने कहा कि अफ़साना निग़ार प्रेमचंद ने हिन्दी नहीं अपितु गांधी द्वारा समर्पित हिन्दुस्तानी भाषा को अपना माध्यम बनाया, जिसमें हिन्दी, उर्दू, संस्कृत सहित क्षेत्रीय भाषाओं के शब्दों की बहुलता देखी जा सकती है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद को समझने के लिए हमें प्रेमचंद द्वारा लिखित न केवल कथा साहित्य को पढ़ना समझना होगा, बल्कि उनके वैचारिक लेखों, निबंधों को भी गहनता एवं सूक्ष्मता से पढ़ना होगा। हिन्दी और अन्य भारतीय भाषा विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ एवं संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आज ३१ जुलाई २०२३ को समापन हुआ। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान आमंत्रित वक्ताओं ने प्रेमचंद के हवाले से राष्ट्र की अवधारणा को परिभाषित किया। इस दौरान प्रेमचंद से जुड़े अनेक पहलुओं पर विचार विमर्श हुए। पूरे कार्यक्रम के दौरान प्रो. राजमुनि, प्रो. रामाश्रय सिंह, प्रो. अनुकूल चंद राय, डॉ. प्रीति, डॉ. अविनाश कुमार सिंह, डॉ. सुरेन्द्र प्रताप सिंह सहित आरती तिवारी, अंजना भारती, मनीष यादव, उज्ज्वल सिंह, प्रज्ञा पांडेय, वरुणा देवी, प्रवीण, वागीश, सौरभ, शुभम, प्रतिभा, हेमलता, सीता, हनुमान, जनमेजय, शिव शंकर, धर्मेन्द्र, अंकित, प्रियंका, रितू, अभिषेक, अमित, अंजलि, गुंजन आदि शोधार्थी उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. विजय रंजन तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो. अनुराग कुमार ने किया ।।