वाराणसी 02 अक्टूबर संवाददाता :- धार्मिक हिंसा इस समय की सबसे बड़ी चुनौती है और गांधी के देश में धार्मिक हिंसा की कोई जगह नहीं है।यह बात महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की कुलपति प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने गांधी और लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर कहीं। प्रोफेसर आनंद कुमार त्यागी ने अपनी संबोधन में आगे कहा कि असली ज्ञान वह है जो मानव कल्याण सुनिश्चित करें। इसके साथ-साथ हमें अपने चरित्र निर्माण पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है।केवल उपदेश देने से कल्याण नहीं होता। अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के अवसर पर उन्होंने कहा कि हमें अपने शब्दों को भी संभाल कर बोलना चाहिए क्योंकि कई बार वचनों की हिंसा भी अत्यधिक घातक सिद्ध हो जाती है। फादर माजू मैथ्यू अस्मिता द्वारा बाइबिल का पाठ किया गया ईसाई मत के फादर मैथ्यू ने कहा -प्रभु यीशु ने कहा कि समाज के उन लोगों के बीच जाइए, जिन्हें आपकी जरूरत है, जो समाज की मुख्य धारा में नहीं हैं।गांधी जी ने कहा कि जो भूखा है उसके लिए रोटी ईश्वर का रूप है।
डॉ० बृजबिहारी त्रिपाठी, पंचवटी मन्दिर, कैन्ट, वाराणसी द्वारा मंगलाचरण के बाद श्रीमद्भगवद्गीता के दूसरे अध्याय का पाठ किया। उन्होंने बताया कि जो शांत है वही सुखी होगा। और शांत होने के लिए त्याग का भावना होनी चाहिए।
मौलाना इशरत उस्मानी, पीलीकोठी, वाराणसी द्वारा कुरान इस्लाम मत के स्कॉलर इशरत उस्मानी ने कहा कि हमें फख्र है कि हम उस देश में जन्मे जो गांधी का देश है। गांधी के जन-भागीदारी के सिद्धांतों को लेकर ही कोई भी अभियान सफल हो सकेगा। जो परिवर्तन आप दूसरों में देखना चाहते हैं वो पहले स्वयं आत्मसात् करें।
प्रो० राजीव रंजन, पूर्व आचार्य, दर्शन शास्त्र विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर कहा कि गांधी ने करुणा जनित मैत्री की बात कही। करुणा का मूल है पर दुःख कातरता। करुणा मुदिता से नियंत्रित हो। और इस सबसे कुछ पाने की अपेक्षा न रखें।गांधी को पाने से अधिक उसके रक्षण में विश्वास करते हैं।ग़लत को मारकर आप जीत नहीं सकते। जीत तो तब जब उससे मनवा लें कि वह ग़लत था।गांधी भारत में अधनंगे हुए क्योंकि भारत का एलीट क्लास आम जनता से दूर हो गया था। गांधी के अधनंगा होने से आमजन को गांधी अपना लगने लगा।स्वदेशी के पीछे भी गांधी की सोच थी कि स्व की अनुभूति हो। जो काते वह पहने और जो पहने वह काते।त्रिरत्न का अनुभव साझा किए, जिसमें है – नाम जप, शारीरिक श्रम और मिल बांटकर खाना।गांधी मारने में नहीं ट्रांसफॉरमेशन में विश्वास करते हैं। रथी रावण की नहीं अपितु विरथ राम की जय चाहते हैं।कोई भी कार्य करने से पहले एक बार सोच लो कि यही मेरे साथ हो तो कैसा लगेगा। स्व धर्म को स्व भाव में ट्रांसफार्म करना होगा।धर्म को पशुपति से समझा जा सकता है, पशु से पति बनना।जिसकी सम्पूर्ण चेष्टाओं के मूल में स्वेच्छाचारिता है वह पशु है, और जिसकी चेष्टाओं में स्व का विलोप है वह पति है।प्राणिमात्र के लिए करुणा का भाव होना चाहिए।लाल बहादुर शास्त्री को शुद्ध भारत का प्रतीक बताया, जिसमें सैनिक और किसान के प्रति समान सम्मान था।
प्रो० रामप्रकाश द्विवेदी, पूर्व निदेशक, गांधी अध्ययनपीठ द्वारा ‘सत्य एवं अहिंसा’ विषयक व्याख्यान में प्रो राम प्रकाश द्विवेदी ने कहा-मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा कि अन्य देशों में मैं पर्यटक के रूप में जाता हूं किंतु भारत जाना मेरे लिए तीर्थयात्रा है क्योंकि यहां गांधी हुए थे।हिरोशिमा और नागासाकी में बमबारी के बाद गांधी ने हरिजन में लिखा कि दुनिया में सभी धर्म प्रवर्तक पूरब में हुए इसलिए दुनिया में शांति स्थापना हमारी जिम्मेदारी है।मंचकला विभाग के छात्र / छात्राओं द्वारा रामधुन “रघुपति राघव राजाराम” भजन की प्रस्तुति की गई । इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के सभी विभाग अध्यक्ष संकाय अध्यक्ष एवं आचार्य उपस्थित रहे । कार्यक्रम का संचालन प्रो० शैला परवीन, आचार्य, समाज कार्य विभागद्वारा किया गया। प्रो० एम.एम.वर्मा संकायाध्यक्ष समाज कार्य संकाय एवं निदेशक- गांधी अध्ययनपीठ ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
