भाषा का विस्तृत होता जनक्षेत्र हमें यह बताता है कि किस तरह जनभाषा भाषा ही नहीं प्रतिरोध और स्वप्न की भाषा में रूपांतरित हो जाती है। भाषा की सामर्थ्य इसी में है कि वह एक समय के बाद मनुष्य के सभी संदर्भों की भाषा बन जाती है। उक्त बातें प्रो.दीनबंधु तिवारी ने कही।
वे हिंदी का विस्तृत होता जन क्षेत्र के अंतर्गत आयोजित सुल्तान अहमद की वैचारिकता और कविता विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी सह काव्य गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे।
इस कार्यक्रम के दौरान सुल्तान अहमद के व्यक्तित्व और रचनाओं पर बात करते हुए हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषा विभाग महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के विभागाध्यक्ष प्रो. निरंजन सहाय ने कहा कि जिस खूबसूरती से सुल्तान अहमद ने अपनी वैचारिकता को व्यक्त किया है वह बहुत कम लोग कर पाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि एक कवि समाज की जिन समास्याओं से लड़ रहा होता है उन्हीं से वह संवेदनात्मक स्तर पर टूट भी रहा होता है। क्योंकि एक कवि समाज का वह संवेदनशील व्यक्ति होता है, जो रूपांतरण का स्वप्न देखता है। वह जब अपनी कविताओं समाज को आईना दिखा रहा होता हैं ठीक उसी समय उसके भीतर अनेक आईने टूट रहें होते हैं। सुल्तान अहमद की रचनाओं में इस खोखले और भीड़तंत्र में बदल रहे समाज की पीड़ा हमें साफ दिखाई देती है साथ ही सभ्यता समीक्षा के द्वारा मनुष्यताबोध की संकल्पना भी साकार होती है।
डॉ विजय रंजन ने कहा कि सुल्तान अहमद ने अपनी कविताओं और ग़ज़लों में यथार्थ को बहुत खूबसूरती से उतारा है। उन्हें पढ़ते हुए हमें विनोद कुमार शुक्ल की शैली याद आती है जो‌ कि वो यथार्थ और खूबसूरत सपना दोनों है। इस शैली का फायदा यह हुआ कि हम यथार्थ की कड़वाहट से बच गएं और समाज खौफनाक चेहरे भी हमारे सामने आ गये। विशिष्ट अतिथि का उद्बोधन देते हुए प्रोफेसर दीनबंधु तिवारी ने सुल्तान अहमद की गजलों और कविताओं की परिधि का विस्तार से विवेचन किया। अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए डॉक्टर लोलार्क द्विवेदी ने कहा मुझे उन्हें पढ़कर अपने सम्बोधन के दौरान “आर्यकल्प ” पत्रिका‌ के सम्पादक ने कहा कि मुझे उन्हें पढ़कर कभी धूमिल की कविता का स्वाद याद आया और कवि मुक्तिबोध की कविता का स्वाद।
हमें निराला की ग़ज़ल का स्वाद आया और कभी शमशेर की ग़ज़ल का स्वाद । लेकिन इन सबके बावजूद इनकी अपनी जो एक अलग शैली है वह ग़ज़ल में नमक पैदा करती है और नमक हर किसी को गला देती है। आगे इन्होंने बताया कि “आर्यकल्प” का अगला विशेषांक सुल्तान अहमद पर आने वाला है। ” अपने वक्तव्य के दौरान कवि और ग़ज़लकार सुल्तान अहमद ने कहा कि सबसे बड़ा सत्य मनुष्य है उससे बड़ा कोई नहीं। उन्होंने आगे कहा कि जब हम नये रास्ते बनाते हैं तो उन पर कांटे भी मिलते हैं लेकिन नये रास्तों पर चलने वालों ने कांटों की कब परवाह कि है। इन्होंने अपने वक्तव्य में आगे कहा कि हमारा प्रेम हमें हमारे दुश्मनों से बड़ा बनाता है और दुश्मनों की नफ़रत उन्हें हमसे छोटा बनाती है। उन्होंने आगे कहा कि वो आग्रह करते हैं आज़ादी की , वो आग्रह करते हैं समानता की और वो आग्रह करते हैं भाईचारे की। उन्होंने अपनी रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए बताया कि मुख्य रूप से तीन बिन्दु हैं पहला क्षण – अनुभव, दुसरा क्षण- दूर हटना, तथा तीसरा क्षण इन्हें शब्दों में ढालना। उन्होंने अपने वक्तव्य का समाहार करते हुए कहा की सबसे बड़ा सत्य मनुष्य है उससे बड़ा कोई नहीं
इस दरमियान उन्होंने अपनी अनेक गजलों और कविताओं का पाठ किया।
उक्त सत्र का संचालन आरती तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ विजय रंजन ने किया। पूरे कार्यक्रम के दौरान प्रो.राज मुनि, प्रो.रामाश्रय, प्रो. अनुकूल चंद राय सहित शोधार्थियों में वरुणा देवी, उज्जवल, प्रतिभा, प्रवीण, सीता, धर्मेंद्र, हेमलता,अमित, अंजलि, आकाश, नम्रता, मनीष सहित तमाम विद्यार्थी उपस्थित रहें।

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