वाराणसी । भारतीय ज्ञान प्रणाली में समाहित शांति,न्याय और लोकतंत्र के विचारों की 21वीं शताब्दी में प्रासंगिकता विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन बीएचयू के सामाजिक विज्ञान संकाय के मालवीय शांति अनुसंधान केंद्र के तत्वावधान प्रारंभ हुआ।आयोजन के प्रथम दिन विशिष्ट अतिथि के रूप में सिक्किम के राजभवन से ऑनलाइन जुड़े सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने अपने संशोधन में भारतीय इतिहास परंपरा में निहित शांति,न्याय और लोकतंत्र संबंधी विचारों पर प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक समाज व्यवस्था में शांति और न्याय उसके दो मजबूत स्तंभ होते हैं।शांति और न्याय की स्थापना के बिना कोई भी देश लोकतांत्रिक नहीं हो सकता।उन्होंने लोगों को बुद्ध द्वारा दिखाए गए सत्य और शांति के मार्ग पर चलने की अपील की।वहीं मुख्य अतिथि लेखिका प्रो० नीरजा माधव ने अपने वक्तव्य में शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में महिलाओं के योगदान का स्मरण किया और कहा कि सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए नागरिकों में इन दोनों भावनाओं का समावेशन जरूरी है।वहीं सेमिनार में उपस्थित प्रो० राजेश्वर आचार्य,प्रो० पतञ्जलि मिश्र, प्रो० राम प्रवेश पाठक, मुख्य वक्ता प्रो० कौशल किशोर मिश्र एवं श्री गिरीशपति त्रिपाठी ने भी भारतीय ज्ञान प्रणाली में समाहित शांति,न्याय और लोकतंत्र के विचारों की 21वीं शताब्दी में प्रासंगिकता विषय पर सार्थक वक्तव्य दिया।वहीं कार्यक्रम में संगोष्ठी संयोजक डॉ० सुनीता सिंह की पुस्तक ‘लोकतंत्र की जननी भारत’ का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।कार्यक्रम की शुरुआत में
स्वागत भाषण एमसीपीआर के समन्वयक प्रो० मनोज कुमार मिश्र ने दिया।जबकि कार्यक्रम का संयोजन इतिहास विभाग के डॉ० सत्यपाल यादव ने किया।इस अवसर पर विभिन्न विभागों से आए दर्जनों छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।

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