यहूदियों ने इजराइल कैसे पहुंचा? जानें यहूदी राज्य के अलग राष्ट्र बनने की कहानी
इस्राइल और फलस्तीनी क्षेत्रों के बीच का संघर्ष सदियों पुराना है। यह विवाद तब से चल रहा है जब इस्राइल नाम का कोई देश नहीं था। तो इस लेख में हम यह जानेंगे कि इजराइल की स्थापना कैसे हुई और यहूदियों ने इजराइल में कैसे कदम रखा।
इजराइल का ऐतिहासिक संदर्भ
जिस तरह से आज इजराइल विश्व मानचित्र पर दिखाई देता है, उसका एक लंबा इतिहास है। एक समय ऐसा था जब इजराइल तुर्की के ओटोमन साम्राज्य द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था। 76 साल पहले, इजराइल दुनिया का एकमात्र यहूदी देश बना। एक दिन में देश बनने के बाद, इसकी पहली लड़ाई लड़ी गई। पड़ोसी अरब देशों ने इजराइल की स्वतंत्रता को स्वीकार नहीं किया और अगले दिन पांच देशों की सेनाएं इस नवगठित देश पर हमला कर दीं। हालांकि, अरब देशों को हार का सामना करना पड़ा।
यहूदी राज्य की स्थापना की मांग
बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप में बड़ी संख्या में यहूदी थे, लेकिन उन्हें लगभग सभी देशों में भेदभाव का सामना करना पड़ा। इसी कारण उन्होंने यूरोप को छोड़कर फलस्तीन का रुख किया। उस समय फलस्तीन ओटोमन साम्राज्य के अधीन था, जहां अरब लोग रहते थे। फलस्तीन धार्मिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण स्थान था, क्योंकि येरूशलेम शहर मुस्लिम, यहूदी और ईसाई तीनों के लिए पवित्र था।
यहूदियों ने यहाँ आकर एक अलग देश की मांग की। उन्होंने धार्मिक पुस्तकों का हवाला देते हुए कहा कि फलस्तीन यहूदियों की भूमि है। धीरे-धीरे यहूदियों की जनसंख्या बढ़ी और उनके और अरबों के बीच विवाद और संघर्ष शुरू हो गए। जब ओटोमन साम्राज्य को विश्व युद्ध I में हार का सामना करना पड़ा, तब फलस्तीन का क्षेत्र ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया।
हिटलर की भूमिका
विश्व युद्ध I के बाद, जब यहूदियों के लिए नए देश की मांग उठी, तब ब्रिटेन को इसकी जिम्मेदारी दी गई। 1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने फलस्तीन में यहूदियों और अरबों के लिए अलग-अलग राज्य बनाने के लिए मतदान किया। उस समय, संयुक्त राष्ट्र ने यह भी स्पष्ट किया कि येरूशलेम, जो तीनों धर्मों के बीच विशेष माना जाता है, एक अंतरराष्ट्रीय शहर रहेगा। यहूदियों ने इस निर्णय को सराहा, लेकिन अरबों में इसे लेकर गुस्सा था।
इजराइल की स्थापना
ब्रिटेन ने 1948 में फलस्तीन छोड़ा। यहूदी नेताओं ने 14 मई 1948 को इजराइल की स्थापना की घोषणा की। इसके साथ ही इसे संयुक्त राष्ट्र से मान्यता भी मिली। इजराइल की घोषणा के तुरंत बाद, मिस्र, जॉर्डन, सीरिया और इराक ने फलस्तीनी क्षेत्र पर हमला किया। यह इजराइल और फलस्तीन के बीच का पहला संघर्ष था।
येरूशलेम का विवाद
जब फलस्तीन के लिए लड़ने वाले देशों को हार का सामना करना पड़ा, तो अरबों को फलस्तीनी भूमि का एक छोटा हिस्सा मिला। जो भूमि अरबों को मिली, उसे वेस्ट बैंक और गाज़ा कहा जाता है। इजराइल इन दोनों स्थानों के बीच स्थित है। इससे वहाँ रहने वाले अरब फलस्तीनियों के लिए संकट उत्पन्न हुआ। यहूदियों की सेनाएं यहाँ पर कब्जा करने लगीं और लगभग साढ़े सात मिलियन फलस्तीनियों को भागकर अन्य देशों में शरण लेनी पड़ी।
वर्तमान स्थिति
वर्तमान में, इजराइल की जनसंख्या 95 लाख से अधिक है, जिनमें से 72 लाख से अधिक यहूदी हैं। जब इजराइल को एक देश के रूप में मान्यता मिली थी, तो इसकी जनसंख्या लगभग आठ-नौ लाख थी, लेकिन उस समय यहाँ एक बड़ी मुस्लिम जनसंख्या भी थी। धीरे-धीरे मुसलमान यहाँ से चले गए और यहूदियों ने अन्य देशों से आकर बसना शुरू किया, क्योंकि वे इसे अपनी भूमि मानते थे।
इस प्रकार, इजराइल में यहूदियों की संख्या दोगुनी हो गई। इसके अलावा, अमेरिका और कनाडा में भी यहूदी आबादी रहती है, जबकि दुनिया के अन्य हिस्सों में भी लगभग 35 लाख यहूदी रहते हैं। कुल मिलाकर, दुनिया में यहूदियों की जनसंख्या लगभग 1.57 करोड़ है।
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